पुज्य महाराज श्री


( आचार्य सतानंद जी महाराज )
पूज्य महाराज जी का जीवन परिचय
उत्तर प्रदेश के काशी क्षेत्र, प्रयागराज जिले के पावन चरवा ग्राम में जन्मे पूज्य सदानंद महाराज का जीवन आध्यात्म और सेवा का अद्भुत उदाहरण है। यह भूमि प्राचीन काल से विद्वानों, आचार्यों और पुण्यात्माओं की तपस्थली रही है। महाराज जी के पूर्वज इसी पावन भूमि से ताल्लुक रखते हैं। बचपन से ही महाराज जी में आध्यात्म में गहरी रुचि थी। गौ सेवा करना, ठाकुर जी और हनुमान जी की भक्ति, तथा भागवत कथा का अध्ययन उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।
महाराज जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव की संस्कृत पाठशाला में प्राप्त की। इसी समय उन्हें भागवत कथा में गहरी रुचि हुई, और 2011 में वृंदावन भ्रमण तथा 2012 में प्रयाग कुंभ में भगवत शरणागति प्राप्त की। वृंदावन में वास के पश्चात, पूज्य गुरुदेव की आज्ञा से श्री गोधाम पथमेड़ा गए, जहाँ उन्होंने 16 महीने तक गौ ब्राह्मणों की संगति में 24 लाख गायत्री जाप किया। इसके बाद, काशी में तीन वर्ष तक गुरु परंपरा के अनुसार शास्त्रों का अध्ययन किया।
महाराज जी ने नर्मदा तट पर रहकर गौ सेवा का कार्य किया और लगभग एक वर्ष तक आलंदी, पुणे, महाराष्ट्र में अध्ययन और अध्यापन किया। तत्पश्चात वृंदावन में पुनः गुरु सेवा के लिए पधारे और आज तक श्रीमद् भागवत कथा, राम कथा और अन्य धार्मिक कथाओं के माध्यम से समाज में आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।
पूज्य महाराज जी के प्रयास केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं हैं। वे सनातन संस्कृति के संरक्षण, गौ सेवा, अन्न सेवा और समाज में भक्ति एवं सेवा भाव के प्रचार-प्रसार में निरंतर कार्यरत हैं। उनके जीवन और कार्य से समाज में करुणा, भक्ति और ज्ञान का संदेश फैलता है।